राम वन गमन पर्यटन के लिए राज्य सरकार की 137 करोड़ 45 लाख रुपये का कॉन्सेप्ट प्लान तैयार केंद्रीय राज्यमंत्री प्रह्लाद पटेल को भेजा प्रस्ताव।

global36garh न्यूज से ललित गोपाल की खबर

 

 

 

 

 

 

रायपुर 4 जून 2020।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने केन्द्रीय पर्यटन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रहलाद पटेल को पत्र लिखकर उनसे छत्तीसगढ़ में राम वन गमन पर्यटन परिपथ को विकसित करने के लिए तैयार किए गए। काॅन्सेप्ट प्लान को केन्द्र सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के तहत स्वीकृति प्रदान करने का आग्रह किया है।
छत्तीसगढ़ में राम वन गमन पर्यटन परिपथ विकसित करने के लिए छत्तीसगढ़ के पर्यटन विभाग द्वारा 09 स्थलों का चयन करते हुए 137 करोड़ 45 लाख रूपए की लागत का एक काॅन्सेप्ट प्लान तैयार किया गया है।
विभिन्न शोध प्रकाशनों के अनुसार प्रभु श्रीराम ने छत्तीसगढ़ में वनगमन के दौरान लगभग 75 स्थलों का भ्रमण किया। जिसमें से 51 स्थल ऐसे हैं,pपश्री राम ने भ्रमण के दौरान रूककर कुछ समय बिताया था। राम वनगमन स्थलों में से प्रथम चरण में आठ स्थलों का पर्यटन की दृष्टि से विकास के लिए चयन किया गया है।

 

 

इन स्थलों में कोरिया जिले के सीतामढ़ी-हरचैका, सरगुजा जिले के रामगढ़, जांजगीर-चांपा जिले के शिवरीनारायण, बलौदाबाजार-भाटापारा जिले के तुरतुरिया, रायपुर जिले के चंद्रखुरी, गरियाबंद जिले के राजिम, धमतरी जिले के सिहावा (सप्त ऋषि आश्रम) और बस्तर जिले के जगदलपुर शामिल हैं। प्रस्तावित आठ स्थलों का चार विभागीय सदस्यों की टीम बनाकर सर्वे कराया जाएगा तथा आवश्यकता के अनुसार वहां पहुंच मार्ग का उन्नयन, पर्यटक सुविधा केन्द्र, वैदिक विलेज, पगोड़ा, मूलभूत सुविधा, वाटर फ्रंट डेवलपमेंट, विद्युतीकरण आदि के कार्य कराए जाएंगे।

 

 

अधिकारियों ने बताया कि राम वनगमन मार्ग में आने वाले स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का काम रायपुर जिले के आरंग तहसील के चंदखुरी गांव स्थित माता कौशल्या मंदिर से प्रारंभ किया जाएगा। इस योजना के लिए राज्य सरकार द्वारा बजट उपलब्ध कराया जाएगा साथ ही भारत सरकार पर्यटन मंत्रालय की योजनाओं से भी राशि प्राप्त करने का प्रयास किया जाएगा। इससे इन स्थलों का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रचार हो सकेगा।शोधार्थियों के अनुसार छत्तीसगढ़ का इतिहास प्राचीन है। त्रेतायुगीन छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम दक्षिण कौसल और दण्डकारण्य के रूप में विख्यात था। दण्डकारण्य में भगवान श्रीराम के वनगमन यात्रा की पुष्टि वाल्मीकि रामायण से होती है।
शोधकर्ताओं के शोध किताबों से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास काल के 14 वर्षों में से लगभग 10 वर्ष से अधिक समय छत्तीसगढ़ में व्यतीत किया था। छत्तीसगढ़ के लोकगीत में देवी सीता की व्यथा, दण्डकारण्य की भौगोलिकता और वनस्पतियों के वर्णन भी मिलते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार भगवान राम ने उत्तर भारत से छत्तीसगढ़ में प्रवेश करने और यहां के विभिन्न स्थानों पर चैमासा व्यतीत करने के बाद दक्षिण भारत में प्रवेश किया था। इसलिए छत्तीसगढ़ को दक्षिणापथ भी कहा जाता है।

शोधार्थियों के अनुसार छत्तीसगढ़ में कोरिया जिले के भरतपुर तहसील में मवाई नदी से होकर जनकपुर नामक स्थान से लगभग 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सीतामढ़ी-हरचैका नामक स्थान से श्रीराम ने छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया था।

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