चित्रेश के नाम से जेएनयू में खौफ क्यों?

Global36 गढ़ के संवाददाता नीलकांत खटकर।।

न्यूज डेस्क – आखिर चित्रेश के नाम पर जेएनयू में इतना डर क्यों सता रहा है? बता दें कि यौन उत्पीड़न के फर्जी मामले में षडयंत्रपूर्वक छल से जेएनयू और दिल्ली पुलिस की मिलीभगत से जेएनयू से बाहर रखा जा रहा है,इस महामारी और महाबंद के दौर में जेएनयू प्रशासन और दिल्ली पुलिस ने अपने निजी स्वार्थ के चलते राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कानून एवं मानवाधिकारों का सरासर उल्लंघन किए, जिसकी लिखित शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय में की गई थी। दिनांक १३,७,२०२० को जेएनयू रजिस्ट्रार डॉ प्रमोद कुमार शर्मा द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय में यह सूचना दी गई कि चित्रेश बंजारे ने कोविड-19 नियमों का उल्लंघन किया, जिस पर SHO थाना बसंत कुंज (उत्तर) से दिनांक 8,9 एवं 19 अप्रैल 2020 को सूचना दी गई।
अब यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आरटीआई से प्राप्त सूचना के अनुसार जेएनयू में डॉ प्रमोद शर्मा नाम का रजिस्ट्रार न कभी था न कभी है? फिर यह फर्जी और गैरकानूनी तरीके से पक्षपातपूर्ण कार्यवाही करने वाले डॉ शर्मा कौन है? क्या चित्रेश अब कोर्ट का सहारा लेंगे? जब संपूर्ण महाबंद कोरोना जैसे भयंकर महामारी से निपटने के लिए किए गए हैं, फिर लंबे समय से बीमार चल रहे चित्रेश को जेएनयू और दिल्ली पुलिस प्रशासन उचित उपचार लेने से क्यों रोके? जेएनयू के कहने पर दिल्ली पुलिस चित्रेश के विरुद्ध असंवैधानिक और गैरकानूनी कार्य करने क्यों तैयार हुए? भूखे- प्यासे सड़क के किनारे गुजर-बसर करने वाले इस छात्र ने कोविड-19 नियमों का उल्लंघन किया अथवा जेएनयू के डॉक्टर शर्मा और SHO थाना बसंत कुंज (उत्तर) ने आपदा प्रबंधन कानून और मूल अधिकारों का दमन किया?स्वास्थ्य के मसले पर जेएनयू और पुलिस चिकित्सकों से किस आधार पर शैक्षणिक योग्यता के तहत ज्यादा ज्ञान रखते हैं? यह बात समझ से परे है। जेएनयू और बसंत कुंज थाना (उत्तर) के SHO कोरोना को कम करने के लिए कार्य कर रहे हैं अथवा बढ़ाने के लिए?
बता दें कि पश्चिमी दिल्ली के मुखर्जी नगर में गृह मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइन के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कानून 2005 एवं आईपीसी की धारा 188 के तहत छात्रों के शिकायत पर 9 मकान मालिकों के विरुद्ध परेशान करने पर प्रवासी मजदूरों और घर से बाहर रह रहे छात्रों की दुर्दशा को देखते हुए मामला दर्ज किया गया सरकारी काम में बाधा डालने के विरुद्ध।अब सवाल यह है कि चित्रेश के शिकायत पर कार्यवाही क्यों नहीं हुई? इसके विपरीत चित्रेश के विरुद्ध ही कार्यवाही की गई। क्या सभी के लिए कानून बराबर नहीं है? चित्रेश जेएनयू के परिसर में लगातार रैगिंग, जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, धर्मांतरण व लैंगिक अन्याय आदि के विरुद्ध संवैधानिक और कानूनी तरीके से आवाज बुलंद करते रहे हैं। शायद इसीलिए जेएनयू इन्हीं मुद्दों पर अलग-अलग समय पर घोर प्रताड़ना देते रहे,शायद जेएनयू वालों को इनका यह तौर- तरीका पसंद नहीं आया होगा इसलिए जेएनयू से बाहर रखना चाहते हैं। लेकिन जेएनयू तो प्रचलन के अनुसार एक तथाकथित छात्र- हितैषी और छात्र- उन्मुख उच्च शिक्षण संस्थान माना जाता है, फिर जेएनयू का यह रूप देखने को क्यों मिल रहा है? जेएनयू वालों को चित्रेश से इतना नफरत क्यों है? क्या चित्रेश इस देश का छात्र नहीं है? क्या चित्रेश को विचार अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है? क्या चित्रेश को बराबरी का नागरिक अधिकार व्यवहार में नहीं, सिर्फ सिद्धांतों में है? यह तो अच्छा हुआ कि चित्रेश अभी जिंदा है, शायद महाबंद के इस दौर में मर भी गया होता तो ऐसे फर्जी रिपोर्ट का खुलासा करने वाला कोई भी नहीं होता।

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