
सुंदर कविता,आ गे हे बसन्त,स्वरचित सुमन लता यादव (व्यख्याता)
आ गे हे बसन्त
सरसों ह फूल गे हे
खेतअउ खलिहान म
चहुं दिशा म छागे हे
धरती के श्रृंगार ह
कोयली ह कूकत हावे
अमुआ के डार म
मउर के महक ह संगी
फइले हे ए संसार म
गली अउ खोर के संग कोलाअउ बारी हर
छाए हे फूल पान म
फुलवा के महक ले
पुरवइया ह मतागे हे
कामदेव के उत्सव संग
बसन्त मास लठियाए हे
भंवरा ह रही रही के
फुलवा ल सताए हे
जम्मो मास ले बड़िहा
बसन्त मास ह आए हे
जम्मो मास ले बड़िहा
बसन्त मास ह आए हे।
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