इच्छा का उठना दु:ख (बंधन) नहीं, इच्छापूर्ति की कामना दु:ख का कारण है – दानवीर दास

Global36 गढ़ के संवाददाता नीलकांत खटकर।।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

न्यूज डेस्क – कबीर साहेब के अनुवाई दानवीर दास ने कहा कि जीवन के दो पहलू है :- एक भोग और एक योग | किंतु करने में जीवन नहीं है, यदि करने में जीवन होता तो सभी को नहीं मिल सकता था, क्योंकि करने में दो व्यक्ति भी कभी सामान नहीं है | श्रम और विश्राम जीवन के दो पहलू हैं | श्रम है संसार के लिये और विश्राम है अपने लिये | जब कोई काम करने चलो तो यह मानकर मत करो कि मुझे क्या लाभ होगा ? बल्कि यह सोचकर चलो कि इससे परिवार को तथा संसार को क्या लाभ होगा | बल का जब उपयोग करो तो इस बात को सामने रखो कि किसी दूसरे को उससे हानि तो नहीं होती | यदि हानि है तो वह नहीं करूंगा | दूसरे के हित के लिये काम करो, उसे कहते हैं श्रम और अपने लिये विश्राम करो | विश्राम में अमर जीवन है, विश्राम में स्वाधीन जीवन है, विश्राम में सरस जीवन है | भोग योनियों में श्रम के अतिरिक्त विश्राम है ही नहीं, पर मनुष्य योनि में सेवा और योग है | विश्राम का अर्थ होता है कामना रहित होना | विश्राम सहज है, स्वभाविक है | सभी के लिये समान रूप से संभव है |
उन्होंने आगे कहा कि सेवा करो, संसार के काम आ जाओ और योग करो, अपने काम आ जाओ | सेवा का फल, कर्तव्य का फल ही योग है | सही काम करने से मनुष्य काम रहित हो जाता है | कामना रहित होने से योग की प्राप्ति होती है | योग की पूर्णता में बोध और प्रेम है | इसलिये दो बातें ज्ञानपूर्वक अनुभव करो मेरा कुछ नहीं है, मुझे कुछ नहीं चाहिये |संकल्प विकल्प तो उड़ते ही हैं | हमारे न चाहने पर भी उठते हैं, इसलिये कि हम संकल्प पूर्ति का सुख भोगते हैं, संकल्प आपूर्ति से दुःखी होते हैं | इसलिये विकल्प उठते हैं | यदि संकल्प पूर्ति का सुख न भोगे, आपूर्ति से दुःखी न हो, नि:संकल्प निर्विकल्प हो जाये तो संकल्प-विकल्प उठने बंद हो जाएंगे | वे तो हमारी किसी क्रिया का परिणाम है, वे कोई नयी प्रवृत्ति नहीं है |भोग जब हम करते हैं तो भोगे हुए का प्रभाव मन पर अंकित हो जाता है, उसका संस्कार जमता है और जब हम शांत होते हैं, तब वही प्रकट होता है | वह प्रकट होता है नाश होने के लिये, वह नया कर्म नहीं है | हमारे भोजन कर लेने के बाद जैसे हमारा भोजन बिना जाने और बिना कुछ किये पचता है | एक होता है “करना” और एक होता है “होना” | होना जो होता है, वह प्राकृतिक शक्तियों के द्वारा होता है, “करना” जो होता है ,वह अपने अभिमान के द्वारा होता है | तो होने वाली बात को कर्म मत मानो, वह कर्म नहीं है | अगर उससे असहयोग कर लेंगे तो उसका प्रभाव अपने आप नष्ट हो जाएगा | संकल्प तो भुक्त इच्छाओं का प्रभाव है और पहले जो भोग कर चुके हैं ,उसी के प्रभाव से उठ़ता है | यदि एक संकल्प पूरा हो गया और उसका सुख भोगा तो उसीके प्रभाव से दूसरा संकल्प उठेगा | संकल्प पूर्ति का सुख ही नवीन संकल्प को जन्म देता है | यदि हम संकल्प पूर्ति का सुख पसंद करते रहेंगे तो एक के बाद एक नवीन संकल्प उत्पन्न होता ही रहेगा और अभाव ही अभाव पल्ले पड़ेगा | संकल्प पूर्ति का सुख मत भागो तथा संकल्प निवृत्ति की शांति में रमण मत करो | बस तब जीवन मुक्ति प्राप्ति हो जाएगी | आज तक विश्व के इतिहास में क्या किसी के सभी संकल्प(इच्छाए) पूरे हुए हैं ? कभी नहीं हुए | इसलिये इच्छाओं की पूर्ति में नहीं निर्विकल्प में अपनी शक्ति को लगाएं |

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