युद्धोन्माद फैलाना बन्द करो; सीमा विवादों को द्विपक्षीय चर्चा के माध्यम से हल करो ।। जनता मुख्यतः रोटी, आवास, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, रोजगार और शान्ति चाहती है।।

Global36 गढ़ के संवाददाता नीलकांत खटकर।।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

रायपुर 18/06/2020 :- 16 जून के रात की दुखद और परेशान करने वाली खबर्रों के बाद भाकपा(माले) रेड स्टार के राजनैतिक ब्यूरो और केन्द्रीय कमेटी ने तत्काल ऑनलाइन बैठक आयोजित की । खबर के मुताबिक भाकपा के प्रदेश सचिव सौरा यादव ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि भारतीय और चीनी सेना के बीच अप्रैल महीने से शुरू हुए आमने-सामने के गतिरोध के कारण, विगत पचास वर्षों में पहली बार, 15 जून की रात को गलवान घाटी में हिंसक झड़पें हुई हैं । इसमें दोनों तरफ के जवान हताहत हुए हैं । भारतीय पक्ष के 20 जवानों की मौत हुई है और कुछ को चोटें आई है । राजनैतिक ब्यूरो और केन्द्रीय कमेटी की बैठक ने उन जवानों के परिवारों के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त की जिन्होंने अपनी जान गंवाई है ।
भारतीय सेना ने कहा है कि छह हफ्ते पहले दोनों देशों की सेनाओं के बीच जो टकराव शुरू हुआ था उसे खत्म करने की प्रक्रिया के बीच तनाव तीखे रूप से बढ़ गया, जिससे 15 जून की रात को गलवान इलाके में चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प की कार्रवाई में 20 भारतीय सैनिक मारे गए हैं । चीनी विदेश मंत्रालय और सेना ने दावा किया कि भारतीय सैनिकों ने उनके इलाके, गलवान घाटी में, जो ‘हमेशा उनका रहा है’, प्रवेश करके हिन्सा को उकसाया था । भारतीय सेना के बयानों के अनुसार, उसका वहां मई महीने की शुरुआत में, 50 साल में पहली बार, चीनी सैनिकों से सामना हुआ था, जिससे चलते 5-6 मई की रात को वे पहली बार आमने-सामने आए थे । अब यह पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है कि सेना प्रमुख और सरकार के प्रवक्ताओं द्वारा बार-बार कही गई बातों के विपरीत, गलवान घाटी में टकराव खत्म करने के बारे में कोई बुनियादी समझदारी नहीं बन सकी थी, क्योंकि चीन ने सभी वार्ताओं में, जिसमें 6 जून की कोर कमांडर स्तर की वार्ता भी शामिल है, इस पर अपनी संप्रभुता का दावा किया था । इसलिए, 15 जून की हिंसक घटना के बाद, अब यह स्पष्ट है कि इसके बाद, केवल सैन्य स्तर की चर्चा पर्याप्त नहीं थी । यह पूर्णतः अनिवार्य था कि तनाव को खत्म करने के लिए दोनों देशों की ओर से तत्काल उच्चतम स्तर पर कूटनीतिक और राजनीतिक पहल करने की जरूरत थी । लेकिन प्रधानमंत्री मोदी, जो पिछले छह वर्षों के दौरान लम्बी चर्चाओं के लिए चीनी राष्ट्रपति से दर्जनों बार मिले थे, जिसमें पिछले साल चेन्नई में उनकी मुलकात भी शामिल है, उन्होंने इसके समाधान के लिए कोई पहल नहीं की । यहां तक कि 15 जून की रात को आमना-सामना तीखा रूप लेकर टकराव में बदल जाने और इसकी वजह से 20 जवानों की मौत के बाद भी, 17 जून की शाम तक उनकी तरफ से एक औपचारिक बयान तक नहीं आया, सिवाय सही समय पर प्रतिशोध लेने के दावा करते हुए युद्धोन्माद भड़काने के लिए अपनी विशिष्ट शैली में की गई घोषणा के ।
देशवासियों, ये सीमा विवाद औपनिवेशिक दिनों के बचे हुए अवशेष हैं । ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने अपनी ‘‘फूट डालो और राज करो’’ नीति के हिस्से के रूप में सीमाओं के रेखांकन का इस्तेमाल भी किया था । स्वतंत्रता संग्राम के समय जो दृष्टिकोण अपनाया गया था, उसके विपरीत कांग्रेस की सरकारें सीमा विवादों का समाधान करने में विफल रहीं । विगत छह वर्षों के दौरान, मोदी राज में, सभी पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते खराब हुए हैं जिसका कारण एक तो इसका इस्लामोफोबिया (इस्लाम के प्रति नफरत) है, और दूसरा इसकी एशिया-प्रशान्त धुरी में बढ़ती भूमिका है जिसे अमेरिका ने चीन के साथ अपने अन्तर-साम्राज्यवादी अन्तर्विरोध में अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए मजबूत किया गया है ।
पिछले छह वर्षों के दौरान मोदी ने देश को एक संकट से दूसरे संकट तक ले गया है । इसकी आर्थिक नीतियों के कारण कोविड-19 (कोरोना महामारी) के प्रकोप से पहले ही मन्दी आ गई थी । हालांकि इस महामारी को रोकने के नाम पर, मेडिकल या कोई अन्य तैयारी किए बिना ही, 24 मार्च की आधी रात से अचानक लाॅकडाउन की घोषणा की गई थी, लेकिन 83 दिन बित जाने के बाद भी कोरोना महामारी दिन-ब-दिन अधिक खतरनाक रूप लेते जा रही है । हमने यह भी देखा है कि इस सरकार ने उन लाखों प्रवासी मजदूरों के साथ क्या किया जो बेरोजगार हो गए और जिनके रहने का ठिकाना छीन गया और अस्थायी आश्रय स्थलों में डाल दिए गए, जो अक्सर भूखे रहे और कई लोग पैदल ही अपने गांवों में वापस जाने के लिए मजबूर हुए । जब विभाजन हुआ था तो उस समय देश ने जो सहा था हमने उससे भी भयावह दृश्य देखा है । अर्थव्यवस्था अभूतपूर्व संकट में है । जनता और अधिक गरीब हो रही है और बेरोजगारी को रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है । अब, जैसा कि ताजा घटनाक्रम साबित करता है, अमेरिकी साम्राज्यवाद के जुनियर पार्टनर के रूप में इसकी अधीनता के परिणामस्वरूप, इसने नेपाल सहित सभी पड़ोसियों के साथ रिश्तों को खराब कर लिया है जो चीन के साथ गतिरोध को खतरनाक स्तर पर ले जा रहा है । मोदी सरकार के इन सभी आपराधिक कृत्यों के परिणामों का बोझ व्यापक मेहनतकश जनता की पीठ पर लाद दिया गया है ।
जिस प्रकार कोरोना का इस्तेमाल सभी राजनीतिक विरोधियों का दमन करने के लिए तथा इस्लामोफोबिया और राजकीय आतंक फैलाने के लिए एक बहाने के रूप में किया गया, वैसे ही मोदी जानबूझकर निष्क्रिय रहकर सीमा पर टकराव को ऐसे अवरोध की स्थिति में पहुंचा देने के बाद, अब भारतीय जवानों की मौत का इस्तेमाल युद्धोन्माद भड़काने के लिए कर रहे हैं, जिस प्रकार फुलवामा में मारे गए जवानों और इसके पश्चात बालाकोट हमले का इस्तेमाल 2019 के लोकसभा चुनाव जीतने के लिए किया गया था । हमवतन लोगों से हमारी अपील है कि वे मोदी सरकार को हमें गुमराह करने और युद्ध का उन्माद फैलाकर हमें और अधिक दुख-कष्ट में डालने की अनुमति नहीं दें, जैसा कि इस सरकार ने कोरोना महामारी का इस्तेमाल हमारे बीच साम्प्रदायिक आधार पर फूट डालने के अलावा नव-उदारवादी कारपोरेट नीतियों को तेज करने के लिए किया है । इस नाजुक मोड़ पर, सीमा विवाद को बातचीत के जरिए हल करने का आह्वान करने के बजाय, मोदी सरकार की कमजोरी को उजागर करने के नाम पर, कांग्रेस एवं अन्य संसदीय विपक्ष खुद को अधिक राष्ट्रवादी साबित होने की कोशिश कर रहे हैं !
चीन की बिरादराना जनता से, जिनका एक महान इतिहास है, हमारी अपील है कि हमारी सरकार के साथ-साथ आपकी सरकार भी सीमा संघर्ष को बिगाड़ रही है, जो कि हम दोनों नहीं चाहते हैं । बातचीत के माध्यम से इसे हल करने के बजाय, जनता की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने और शान्ति के लिए काम करने की अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए, दोनों देशों की सरकारें युद्धोन्माद को हवा दे रही हैं ।
हम भारत और चीन दोनों देशों की जनता से, जिनके पास हम दोनों महान जनता के बीच बिरादराना रिश्तों की लम्बे समय से चली आ रही विरासत है, नेपाल की जनता से और अन्य सभी पड़ोसी देशों की जनता से अपील करते हैं कि आइए, हम अपने देशों के प्रतिक्रियावादी शासक वर्गों को सीमा विवाद, जो उपनिवेशिक काल का अवशेष है, इस्लामोफोबिया और नस्लवाद के नाम पर हमारे बीच फूट डालने की अनुमति न दें । आइए, अपनी सरकारों को सीमा के युद्धों में घसीटने से रोकने के लिए हम मिलकर काम करें, जिससे हमारे देशों की सेना के कई और जवानों की जान जाएगी, जो कि साम्राज्यवादियों और उनके जुनियर पार्टनरों के स्वार्थों की पूर्ति के लिए तोप चारे के समान हैं । इससे हमारा, मेहनतकश आम जनता के व्यापक बहुमत का जीवन और अधिक कष्टमय होगा ।

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