संत श्री कबीर जयंती के अवसर पर आज के हमारे अतिथि संपादक माननीय प्रदीप महंत ने कबीर के प्रमुख दोहे को सारांश से समझाकर लेख के माध्यम से ग्लोबल 36 गढ़ के हमारे प्रतिनिधि को बताया पढ़िए उनकी लेख।।
बिलासपुर – श्री कबीर निर्णय मंदिर बुरहानपुर के प्रांगण में गुरुओं के गुरु बंदी छोड़ सतगुरु कबीर साहेब जी के 622 वी जयंती मनाया गया | सदगुरु कबीर साहेब 1398 ईस्वी में लहरतारा के तालाब में एक बालक के रूप में नीरू नीमा दंपत्ति को प्राप्त हुआ था | सदगुरु कबीर साहेब 120 वर्षों तक देश विदेश में घूमकर अंधविश्वास रूढ़िवादी को खत्म किये, जाति धर्म के नाम पर चल रहे झगड़ा को खत्म किये | सदगुरु कबीर अपने मौलिक सदग्रन्थ बीजक में लिखते हैं ।
*पेट न काहू वेद प
ढ़ाया, सुन्नती कराय तुरुक नहीं आया ||*
*जो तू ब्राह्मण ब्राह्मणि को जाया, और राह दे काहे न आया ||*
*जो तू तुरुक तुरुकनि को जाया, पेटहि काहे न सुन्नती कराया ||*
सद्गुरु कबीर कहते हैं हे ब्राह्मण जो तू अपने आप को जन्म से ब्राह्मण मानता है औरों को छोटा व नीच मानता है तो माता के गर्भ से ही जनेऊ व वेद पढ़कर क्यों नहीं आया, और हेतु तुरुक (मुस्लिम पठान) तू अपने आप को खुदा का बंदे नेक मानता है तो पेट से ही सुन्नती कर के खुदा ने क्यों नहीं भेजा |
*दिल में खोज दिल ही मां खोजो यह करीमा रामा |*
हे मुढ़ मनुष्य जो तू राम को मंदिर में और करीमा खुदा को मस्जिद में ढूंढता है तो वहां कुछ भी नहीं है वह तो प्राणी मात्र के हृदय में इस शरीर को चलाने वाला चेतन जीव है |
*पाहन पूजे हरि मिले, मैं पूजू पहाड़ |*
*इससे तो चक्की भली, जाको पीस खाये संसार ||*
हे धर्म के ठेकेदार चतुर ज्ञानी मुखिया कहलाने वाले, जीव दया करके प्राणी मात्र का रक्षा सेवा करो इससे तुम्हारे अंतकरण शुद्ध पवित्र होगा, जिससे सुख और शांति प्राप्त होगी | इस तरह समाज में फैले पाखंड छुआछूत आडंबर को खत्म कर एक भाईचारा के सूत्र में समाज को पिरोया है ||