
“स्वास्थ्य सेवाएं सम्मानित नही, है लोगो की मजबूरी का पेशा “
अतिथि लेखक व विचारक
पवन गोयल
स्वास्थ्य सेवाये / डॉक्टर : वर्तमान समय के सार्वाधिक लुटेरे कहना उचित होगा, इस वर्ग का यह कहना कि यह सम्मानित वर्ग और पेशा है?पूर्णतया: गलत है, यह लोगो की मजबूरी का फायदा उठाने का पेशा है, लोगो के पास अन्य कोई समाधान नही !
इनका किसी भी तरह पेट नही भरता :-जब मरीज दिखाने जाता है,तो काउन्टर पर दी गयी फीस की रसीद नही, अनावश्यक जांच लिखना, क्योकि कमीशन उतना अधिक बनेगा, दवा के नाम ऐसे लिखना कि उनकी सेटिंग वाली दुकान पर ही मिलेगी और इन दवाओं में एमआरपी इतनी अधिक होती है कि कमीशन भरपूर मिलता है, सभी दवा कम्पनियो से बड़ी सँख्या में प्राप्त सेम्पल को विक्रय करना,दवा कम्पनियो द्वारा भारी-भरकम कमीशन,फ्री विदेश यात्राएं, फर्जी एमआरपी का बड़ा खेल, 5 रु की दवा को 500 तक की भी बना देते है, इसके बाद भी जबाबदेही विहीन आचरण एवम कानून का जबरदस्त सुरक्षा कवच, अपने अधीनस्थ स्वास्थ्य कर्मियों का शारीरिक,आर्थिक,
मानसिक शोषण ! कई बड़े संस्थान तो राजनीतिक पहुँच का इस्तेमाल कर, जनसेवा के नाम पर फ्री सरकारी जमीने पाकर, बड़े बड़े व्यवसयिक हस्पताल चला रहे है ! उसके बाद भी मरीज सुरक्षित नही ! पता नही किस हस्पताल में कौन डॉक्टर /स्वास्थ्य कर्मी,किसका यौन शोषण कर दे ?
आर्थिक हैसियत देखकर,किसकी मामूली बीमारी को गम्भीर आपरेशन में तब्दील कर दे ? कोई भरोसा नही ? इसके वावजूद यह वर्ग कहता है कि हम सम्मानित है और जनसेवा करते है ? दुर्भाग्यजनक है,
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