महामहिम राष्ट्रपति डॉ० के०आर० नारायणन

Global36 गढ़ के संवाददाता नीलकांत खटकर।।

न्यूज डेस्क – आज आपको बतला रहे हैं देश के पहले दलित राष्ट्रपति डॉ के आर नारायणन के बारे में।उनका सम्पूर्ण जीवन सघर्ष से भरा हुआ था। वे केरल के एक गांव में फूस की झोंपड़ी में 1920 में पैदा हुए ! उनके पिता आयुर्वेदिक ओषधिओं के ज्ञाता थे इसी
से वे अपना परिवार चलाते थे ! गरीबी इतनी भयंकर कि 15 km. दूर सरकारी स्कूल में पैदल पढ़ने जाते थे ! कभी कभी फीस न होने पर उन्हें कक्षा से बाहर खड़ा होना पड़ता था ! उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई की ज़ब वह भारत लोटे तो उनके प्रोफेसर ने एक पत्र भारत के प्रधान मंत्री जवाहर लाल के नाम उन्हें दिया उस पत्र में उनकी प्रतिभा का उल्लेख था चूंकि उन्होंने तीन वर्ष का कोर्स 2 साल में विशेष योग्यता के साथ पास किया था ! ज़ब वह पत्र उन्होंने नेहरू जी को दिया तो नेहरू जी ने उन्हें राजदूत नियुक्त कर दिया !सेवा निवृत होने पर उन्हें JNU का कुलपति बनाया ! एक बार वे उप राष्ट्र पति रहे ! उसके बाद वे भारत के दसवें
पहले दलित राष्ट्रपति बने।आइए उनकी विशेषता के बारे में जानते हैं।

1.उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को बिना हस्ताक्षर किये फाइल यह कहते हुए वापस कर दी
कि 10 न्यायाधीशों के इस पेनल में एक भी एससी./एसटी जज क्यों नहीं है उनके तेवर देखकर सरकार में हड़कंम मच गया तब जा कर मुख्य न्यायाधीश के. जी. बाल कृष्णन को बनाया गया। जो अनुसूचित जाति के पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश बने। इस व्यवस्था को एससी, एसटी, ओबीसी के लोग भूल नहीं सकते। ये भी केरल के ही थे।
2 . दूसरा कड़ा कदम ज़ब उठाया तब वाजपेयी सरकार ने सावरकर को भारत रत्न देने के प्रस्ताव को वापस कर दिया !
3.तीसरा कड़ा कदम ज़ब उठाया तब वाजपेयी सरकार ने यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाने का प्रस्ताव ख़ारिज कर दिया।
ऐसे महामहिम की आज जरूरत है !
ऐसे महान पुरुषों को उत्तर भारत के एससी, एसटी, ओबीसी के लोग जानते तक नहीं !लोगों द्वारा समाज में यह भ्रम फैलाया गया है कि दलित लोग शिक्षा के लायक नहीं थे।जबकि संविधान सभा में 14 महिलाएं ग्रजुऐट थी एक एससी की महिला ग्रेजुएट थी !
हजारों लोग ब्रिटिश शासन में उच्च शिक्षित थे, !
दूसरे महामहिम राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधा कृष्णन जिनके नाम से शिक्षक दिवस मनाया जाता है !
वे तथा डॉ के .आर नारायणन सभी अंग्रेजो के इंग्लिश माध्यम में पढ़े थे ।
#महामहिम राष्ट्रपति डॉ०के आर_नारायणन जी ने सन 1948 में अंग्रेजी साहित्य में प्रथम श्रेणी से एमए पास किया। एमए पास करने के बाद उन्होंने’ महाराजा कालेज में अंग्रेजी प्रवक्ता पद के लिये आवेदन किया। लेकिन त्रावणकोर के दीवान सीपी रामास्वामी अय्यर ने नारायणन जी को प्रवक्ता पद पर काम करने से रोक दिया और कहा कि आपको सिर्फ़ क्लर्क पद पर ही कार्य करना होगा।अय्यर के मन में जातीय भेदभाव इस क़दर भरा हुआ था कि वह कामगार किसान आदिवासी-कबाइली जमात के किसी भी युवक-युवतियों को प्रवक्ता पद पर आसीन होते सहन नही कर सकता था।स्वाभिमानी डॉ०के आर नारायणन जी ने क्लर्क की नौकरी पर काम करने से साफ-साफ इंकार कर दिया और इसके ठीक बाद में विवि के दीक्षांत समारोह में बीए की डिग्री लेने से भी मना कर दिया।इस घटना के 4 दशक बाद सन 1992 में उपराष्ट्रपति बनने पर उनके गृह राज्य केरल विवि के उसी सीनेट में उनका जोरदार स्वागत हुआ।उस वक़्त की तत्कालीन जातिवादियों पर तंज कसते हुए नारायणन जी ने कहा “आज मुझे उन जातिवादियों के दर्शन नही हो रहे हैं’ जिन्होंने वंचित जमात का सदस्य होने के कारण इसी विवि में मुझे प्रवक्ता बनने से वंचित कर दिया था”।1946 में श्री के आर नारायणन जी दिल्ली में डॉ० बी० आर० आम्बेडकर जी से मिलने आये थे। डॉ० अम्बेडकर जी उस समय के वायसराय की काउंसिल में श्रम विभाग के सदस्य थे। नारायणन जी की योग्यता को देखते हुए डॉ० अम्बेडकर जी ने उन्हें दिल्ली में ही भारत ओवरसीज विभाग (जिसे अब “विदेश विभाग “कहा जाता है) में’ 250 रुपये प्रतिमाह पर सरकारी नौकरी दिलवा दी।

##राजनियिक के तौर पर नारायणन जी टोकियो, लंदन, ऑस्ट्रलिया, हनोई में स्थिति भारतीय उच्चायोग में प्रतिष्टित पदों पर रहे और चीन के राजदूत भी नियुक्त हुए। वहाँ से रिटायर होने के बाद सन 1979 से 1980 तक जेएनयू के कुलपति रहे। सन1980 से 1984 तक अमेरिका के राजदूत भी रहे।माननीय के आर नारायणन जी 14 जुलाई 1997 को भारत के दसवें राष्ट्रपति चुने गए।श्री के आर नारायणन जी ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने वंचित वर्ग के लोगों के लिये’ उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बनने का रास्ता खोला था।उच्चतम न्यायालय के तत्कलीन मुख्य न्यायाधीश ए एस आनंद ने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के लिये दस न्यायविद उच्च न्यायालयों के कानून विशेषज्ञों का एक पैनल बनाकर मंजूरी के लिये राष्ट्रपति को भेजा था।श्री के आर नारायणन जी ने उस फाइल को स्वीकृति करने की बजाय तल्ख टिपण्णी लिखी-“क्या इन दस व्यक्तियों के पैनल में रखने के लिये उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों में’ भारत में अनुसूचित वर्ग के अनुसूचित जाति एवं जनजाति का एक भी व्यक्ति योग्य न्यायाधीश नही है?”
देश के राष्ट्रपति की इस टिप्पणी से सरकार से लेकर न्यायालय में हड़कंप सा मच गया। न्यायिक पदों के लिए देश में वंचितों और आदिवासियों के प्रतिनिधित्त्व पर बहस शुरू हो गई ।एक समय ऐसा भी आया जब राष्ट्रपति श्री के आर नारायणन जी किसी दौरे पर थे और श्री के आर नारायणन जी को जिस होटल में ठहराया जाना था, उसी दौरान दक्षिण पंथी मनुवाद व मुनिमवाद के पक्षधर लोगों ने होटल के कर्मचारियों से मिलकर श्री के आर नारायणन जी को भोजन में जहर देकर मारने की कोशिश की थी। परन्तु होटल के रसोइयों ने ऐसा करने से मना कर दिया था।एक राष्ट्रपति की इस बेबाक टिप्पणी ने वंचित जमात के लोगों के लिये सर्वोच्च न्यायालय में प्रवेश का रास्ता खोला गया था। सत्तारूढ़ मनुवाद व मुनिमवाद के अनुसार नही चलने के कारण ही श्री के आर नारायणन जी ने दोबारा राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। श्री के आर नारायणन जी वह पहले देश राष्ट्रपति थे जो अनुसूचित वर्ग से थे। जबकि राष्ट्रपति का चुनाव लडते समय उन्हें सामान्य श्रेणी में चुनाव लड़ा था।वर्तमान वाले महामहिम राष्ट्रपति आप भी इनसे कुछ सीख लीजिये। समाज इसका हिसाब आपसे जरूर पुछेगा।

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