एक आदिवासी के मुँह पर पेशाब करने की सजा केवल NSA क़ानून नहीं है – धन सिंह मरकाम

Global36garh news // आप सभी को अच्छे से पता है कि मध्य प्रदेश से एक वीडियो बहुत ही तेजी से वायरल हो रहे हैं। जिसमे बीजेपी नेता ने एक आदिवासी युवक के ऊपर पेसाब करते हुए दिख रहे है। दिखाई देता है आपको बता दें कि या सीधी जिले के कुबरी गांव का है। जानकारी के अनुसार सर्वेश शुक्ला को बीजेपी के विधायक केदार नाथ शुक्ला का प्रतिनिधि बताया जा रहा है। वही दूसरे तरफ आदिवासी युवक जिसका नाम दशमत रावत बताया जा रहा है। मुझे यह नही पता की इस घटना जिसमे बीजेपी नेता प्रवेश शुक्ला, आदिवासी दश्मत रावत के ऊपर पेसाब करते देख लोगो के खून खौल या नही। पर मेरा खून बहुत खुला , बहुत पूरा लगा। आदिवासी को इस देश का मालिक बोलते हैं। बताओ मुझे मालिक है आदिवासी या जानवर । आए दिन आदिवासियो के साथ तरह तरह कि घटनाएं घट रही है और वे लोग कहा मुंह छिपा कर बैठे हैं जो बोलते है आदिवासी हिंदू है? आज तक किसी भी आदिवासी के ऊपर अन्याय हुआ है तो उनके सपोर्ट में कोई गैर आदिवासी क्यों नही आया? कब समझेगा आदिवासी कि गैर आदिवासी सिर्फ उनके वोट के लिए उन्हें भाई/बहन बनाते है बाकी कुछ नहीं।

 

न्याय ऐसा होना चाहिए

 

एक आदिवासी के मुँह पर पेशाब करने की सजा केवल NSA क़ानून नहीं है। इसमें कोई शारीरिक हिंसा नहीं की गई है। ये एक पूरे जातीय समाज के आत्मविश्वास को जूते से कुचलने का कृत्य है। प्रवेश शुक्ला को सार्वजनिक रूप से सेम उसी पीड़ा का अहसास कराना चाहिए जो उसने एक आदिवासी को दी। एक साल की सजा, दो साल की सजा, पैसों का जुर्माना, ये सब शारीरिक या आर्थिक अपराधों में दिया जाना चाहिए। इन सज़ाओं को काटने के बाद भी अपराधी के जातीय दंभ में रंच भर कमी नहीं आती। वो और उसके जैसे संभावित अपराधी तब भी इसी मानसिकता के साथ समाज में रहते हैं। इसका मतलब कुछ साल-महीने जेलों की सजाएँ अपराधी की जातीय दंभ की मानसिकता को बदलने में अपर्याप्त हैं।

 

वे ये अपराध नहीं करते तब भी इसकी ट्रेनिंग जन्म से ही उन्हें मिलती है। यहाँ अपराध की उम्र सदियों पुरानी है। ये अचानक घटी कोई नई चीज नहीं है। प्रवेश शुक्ला तो उसका बस प्रतिनिधित्व करता है। प्रवेश शुक्ला कुछ नया अपराध नहीं कर रहा। वह तो इसे दोहरा रहा है। जिसे हर दिन वो किसी अन्य रूप में दोहराता होगा। कहीं किसी को ज़मीन पर बैठाकर, कहीं किसी के हाथ का पानी न पीकर। कहीं भेदभाव कर। पेशाब करना तो उसका दर्ज अपराध है। उसकी नसों में बह रहा जातीय दंभ तो हर दिन अलग-अलग विधियों से उससे और उसके जैसे लाखों लोगों से ऐसा अपराध कराता है। यहाँ कोई एक अपराधी नहीं है, न यहाँ केवल एक पीड़ित है। यहाँ दो जातीय गौरवों का टकराव है। दो मानसिकताओं का टकराव है।

 

एक उसका प्रतिनिधि है जिसके आमत्सम्मान को हमेशा ऐसे ही कुचला गया। कभी उस समाज की महिलाओं के गौरव को भंग करके। कभी ज़मीन पर बैठाकर। दूसरी तरफ़ वो है जिसका जातीय गौरव इतना ऊँचा है कि उसने वंचित समाज से गलती से छू जाने को भी अपराध माना। इसलिए कहा कि यह शारीरिक अपराध नहीं है। ये एक इंटर-जनरेशनल वॉर है। जो मानसिक स्तर पर लड़ा जा रहा है। जिसमें पीड़ित वर्ग के आत्मविश्वास को वक्त वक्त पर इतनी अलग-अलग विधियों से कुचला गया है कि उसमें न्यूनतम मानवीय आत्मविश्वास भी नहीं बचा। इसलिए ये अपराध एक आदमी के साथ नहीं बल्कि सदियों पीड़ित जाति के साथ किया गया अपराध है। उसके आत्मविश्वास पर पेशाब करने का अपराध है। ये दोबारा न हो इसे सुनिश्चित करने के लिए इसकी सजा सामान्य विधि की नहीं हो सकती। पेशाब करने की सजा पेशाब किया जाना ही होनी चाहिए। आत्मसम्मान कुचलने की सजा, जातीय दंभ को कुचलना ही होनी चाहिए। क्योंकि यहाँ एक पूरी जाति पर पेशाब किया गया है। इसलिए उस जाति और व्यक्ति का आत्मसम्मान वापस लाना ज़रूरी है। और केवल यही एक तरीक़ा पीड़ित समाज के आत्मविश्वास को पुनः वापस ला सकता है। केवल ये ही तरीक़ा जातिवादी मानसिकता को कुचल सकता है।

 

ये पूरी तरह सम्मान और आत्मविश्वास का मामला है। आत्मविश्वास सिर्फ़ बदले से वापस आता है। सजा पाकर भी एक जातिवादी समाज के दुस्साहस में कोई कमी नहीं आने वाली। 20 वर्ष की सजा पाने के बाद भी वो जातिवादी रहेगा। और उसके जैसे जातिवादी लोग ऐसे कृत्य करते रहेंगे। इसका ठोस समाधान यही है कि इन्हें भी वही पीड़ा से गुजारा जाए। और सामने इसे एक नजीर की तरह रखा जाए कि किसी इंसान के मुँह पर पेशाब करने की सजा सिर्फ़ NSA नहीं होगी। क्योंकि NSA लगने के बाद भी उसके जातीय आत्मविश्वास में कोई कमी नहीं आती। उसके जातीय गौरव में तब भी कोई कमी नहीं आती। जिसदिन पेशाब करने की सज़ा पेशाब किया जाना होगी। उसी दिन जातीय गौरव का दंभ टूटेगा। उसी दिन जातीय अभिमान रखने वालों में भय होगा। जातीय तौर पर किसी के आत्मविश्वास को कुचलने की सज़ा, जातीय दंभ को कुचलना ही होगी। यही पूर्ण न्याय होगा।

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