Global36garh news:रक्षा बंधन विशेष :- दुर्गेश यादव

बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँधा है प्यार के दो तार से संसार बाँधा है रक्षाबंधन का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है वह भी तब जब आर्य समाज में सभ्यता की रचना की शुरुआत मात्र हुई थी रक्षाबंधन पर्व पर जहाँ बहनों को भाइयों की कलाई में रक्षा का धागा बाँधने का बेसब्री से इंतजार है वहीं दूर – दराज बसे भाइयों को भी इस बात का इंतजार है कि उनकी बहना उन्हें राखी भेजे । उन भाइयों को निराश होने की जरूरत नहीं है जिनकी अपनी सगी बहन नहीं है क्योंकि मुँहबोली बहनों से राखी बंधवाने की परंपरा भी काफी पुरानी है | असल में रक्षाबंधन की परंपरा ही उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो लेकिन उसी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत की उत्पत्ति लगभग 6 हजार साल पहले बताई गई है इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं इतिहास के पन्नों से रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती व सम्राट हुमायूँ हैं मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थीं उस दौरान गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूँ को राखी भेजी थी तब हुमायूँ ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था ।दूसरा उदाहरण अलेक्जेंडर व पुरू के बीच का माना जाता है कहा जाता है कि हमेशा विजयी रहने वाला अलेक्जेंडर भारतीय राजा पुरू की प्रखरता से काफी विचलित हुआ इससे अलेक्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गईं थीं उसने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुना था सो , उन्होंने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई थी क्योंकि भारतीय राजा पुरू ने अलेक्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया था | इतिहास का एक अन्य उदाहरण कृष्ण व द्रोपदी को माना जाता है कृष्ण भगवान ने दुष्ट राजा शिशुपाल को मारा था युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएँ हाथ की अँगुली से खून बह रहा था इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की अँगुली में बाँधा जिससे उनका खून बहना बंद हो गया तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था वर्षों बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी ।

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